KUMBH 2021 POEM DALMIA


 KUMBH MELA 2021

VLOG BY POEM DALMIA

कुंभ मेले का हिंदू धर्म में काफी महत्व है. प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, कुंभ मेले की कहानी समुद्र मंथन से शुरू होती है, 

जब देवताओं और असुरों में अमृत को लेकर युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई थी. जब मंदार पर्वत और वासुकि नाग की सहायता से देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन शुरू हुआ, तो उसमें से कुल 14 रत्न निकले. इनमें से 13 रत्न तो देवताओं और असुरों में बांट लिए गए, 

लेकिन जब कलश से अमृत उत्पन्न हुआ, तो उसकी प्राप्ति के लिए दोनों पक्षों में युद्ध की स्थिति पैदा हो गई. असुर अमृत का सेवन कर हमेशा के लिए अमर होना चाहते थे, वहीं देवता इसकी एक बूंद भी राक्षसों के साथ बांटने को तैयार नहीं थे. ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अमृत कलश को अपने पास ले लिया. उन्होंने ये कलश इंद्र के पुत्र जयंत को दिया. जयंत जब अमृत कलश को दानवों से बचाकर भाग रहे थे, तब कलश से अमृत की कुछ बूंदे धरती पर गिर गईं. ये बूंदें जिन चार स्थानों पर गिरीं- हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन, वहीं हर 12 साल बाद कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. 

 हर 12 साल बाद इस मेले के आयोजन के पीछे भी एक पौराणिक कथा है. 

इंद्र पुत्र जयंत को अमृत कलश लेकर स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन का समय लगा था. देवताओं का 1 दिन धरती पर 1 वर्ष के बराबर माना जाता रहा है. इसलिए हर 12 वर्ष बाद कुंभ पर्व मनाया जाता है. 

 

 

Mansa Devi Temple---------------------------------------------------------------------------

 मान्यताओं के अनुसार मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। मां मनसा को नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है। मां मनसा का सबसे प्रसिद्ध एक शक्तिपीठ हरिद्वार में स्थित है। पुजारी गणेश प्रसाद शर्मा के मुताबिक जिस वक्त महिषासुर ने धरती पर आतंक मचाया तो देवता परेशान हो उठे। 

उस वक्त मां मनसा ने देवताओं की इच्छा पूरी की और महिषासुर का वध किया। वध करने के बाद हरिद्वार में मां मनसा ने विश्राम किया और तभी से यहां माता का प्रसिद्ध मंदिर है। उस वक्त मां मनसा देवताओं की इच्छा पूरी करती थी और कलयुग में मां मनसा उसके दरबार आने वाले सभी लोगों की इच्छा पूरी करती है। 

 

Chandi Devi Temple -------------------------------------------------------------------------

  चंडी देवी मंदिर में खंभ के रूप में विराजमान है मां दुर्गा धर्मनगरी हरिद्वार में मां दुर्गा के अनेक मंदिर हैं। इनमें से एक यहां का प्रख्यात मां चंडी देवी का मंदिर है। नील पर्वत पर स्थित इस मंदिर में मां खंभ के रूप में विराजमान है। वैसे तो यहां साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, 

मगर मान्यता है की नवरात्रों के दौरान जो भक्त माता के इस दरबार में सच्चे मन प्रार्थना करता है, मां उसकी हर मन्नत पूरी करती है। 

यह है धार्मिक मान्यता गंगा से सटे नील पर्वत पर स्थित मां चंडी का दरबार आदि काल से है। 

जब शुंभ, निशुंभ और महिसासुर ने इस धरती पर प्रलय मचाया हुआ था तब देवताओं ने उनका संहार करने का प्रयास किया, लेकिन जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ के दरबार में दोनों के संहार के लिए गुहार लगाई। तब भगवान भोलेनाथ व देवताओं के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया और चंडीरूप धारण कर उन दैत्यों को दौड़ाया। 

शुंभ, निशुंभ इस नील पर्वत पर मां चंडी से बच कर छिपे हुए थे, तभी माता ने यहां पर खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध कर दिया। इसके उपरांत माता ने देवताओं से वर मांगने को कहा। स्वर्गलोक के सभी देवताओं ने मानव जाति के कल्याण के लिए माता को इसी स्थान पर विराजमान रहने का वर मांगा। 

तब से ही माता यहां पर विराजमान हो कर अपने भक्तों का कल्याण कर रही है और इस मंदिर के महत्व को देखते हुए नवरात्रों में यहां देश के विभिन्न जगहों से भक्त श्रद्धाभाव के साथ पहुंचते हैं। 

 आदि शंकराचार्य ने कराया था जीर्णोद्धार मां चंडी देवी मंदिर के पुजारी पंडित राज कुमार मिश्रा के मुताबिक, नवरात्रों में यहां देश के विभिन्न कोनों से भक्त पहुंचते हैं। मां भक्तों की मनोकामना पूरी करती है। 

आठवीं शताब्दी में मां चंडी देवी का जीर्णोद्धार जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने विधिवत रूप से कराया था। इसके बाद कश्मीर के राजा सुचेत सिंह ने 1872 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मां रुद्र चंडी एक खंभे के रूप में स्वयंभू अवतरित है।

 

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